बराए नाम सही दिन के हाथ पीले हैं कहीं कहीं पे अभी रौशनी के टीले हैं तमाम रात मिरे ग़म का ज़हर चूसा है इसी लिए तिरी यादों के होंट नीले हैं हमारे ज़ब्त की दीवार आहनी न सही तुम्हारे तंज़ के नेज़े कहाँ नुकीले हैं उन्हें भी आज की तहज़ीब चाट जाएगी कहीं कहीं पे जो सिमटे हुए क़बीले हैं बदन का लोच लबों की मिठास क़ुर्ब का लम्स तसव्वुरात के सब ज़ाइक़े रसीले हैं ख़ुलूस-ए-दिल से समाअ'त का इम्तिहान तो लो ग़म-ए-हयात के नग़्मे बड़े सुरीले हैं