बरहमन ले के जो मेरे लिए ज़ुन्नार आया उस ने समझा कि यही बुत का ख़रीदार आया ख़ुद ख़रीदार हुआ हुस्न-ए-बुताँ का वो कभी हो के यूसुफ़ वो कभी बर-सर-ए-बाज़ार आया शौक़ थामे था कमर और तमन्ना बाज़ू कू-ए-जानाँ में मिरा जब दिल-ए-बीमार आया लाला-रुख़ कैसा है देखूँ तो ज़रा चल के उसे किस लिए दिल की इमारत में न वो यार आया रोज़-ए-रौशन सी शब-ए-तार हुई आँखों में जिस घड़ी याद तिरा गेसू-ए-ख़मदार आया हसरत-ओ-यास-ओ-तमन्ना के मिले पुशतारे कारवाँ इश्क़ का मुझ तक ये लिए बार आया क्या डराता है मुझे तेग़ दिखा कर क़ातिल मक़्तल-ए-इश्क़ में मरने को मैं तय्यार आया तल्ख़ी-ए-मर्ग भी देने लगी मुझ को लज़्ज़त सर-ए-बालीं दम-ए-मुर्दन जो मिरा यार आया मेरे दिलबर के तसव्वुर ने किया इस को हसीं मैं न समझा ये क़ज़ा आई कि वो यार आया कोई ले जा के मिरे दिल को ये कहता उस से ले तिरे गेसू-ए-पुर-ख़म का गिरफ़्तार आया ऐ 'जमीला' न मिला बुत न मिला मुझ को ख़ुदा मैं तो उस हस्ती-ए-मौहूम में बे-कार आया