बर्क़-ए-रुख़्सार-ए-यार फिर चमकी इस चमन की बहार फिर चमकी तू ने फिर इस को सान पर रक्खा तेरे ख़ंजर की धार फिर चमकी मेरे गिर्ये से आब-ओ-ताब आया सूरत-ए-रोज़गार फिर चमकी ख़ून-ए-आशिक़ से वो ज़ह-ए-दामन दम-ए-शमशीर वार फिर चमकी देखियो पाँव रख दिया किस ने आज क्यूँ नोक-ए-ख़ार फिर चमकी वो जो इक टीस सी है दिल में मिरे रह के बे-इख़्तियार फिर चमकी 'मुसहफ़ी' की जो तू ने दर-रेज़ी शायरी तेरी यार फिर चमकी