बरमला हुस्न-ए-दिल-आवेज़ का क़िस्सा न सुना चाक-ए-दामन ना दिखा उज़्र-ए-ज़ुलेख़ा न सुना काबिल-ए-ज़िक्र मोहब्बत के बहुत से रुख़ हैं कार-ए-वहशत के सिवा और कोई अफ़्साना सुना वक़्त तेज़ी से गुज़रता है पर ऐसा भी भी नहीं आज कहता है बहुत क़िस्सा-ए-फ़र्दा न सुना आइना-रू कोई ता'बीर ज़रा दिखला दे ताकि पहचान लूँ उस को जिसे देखा न सुना कब से हूँ गोश-बर-आवाज़ तिरी महफ़िल में यार दिलदार बस अब शिकवा-ए-बेजा न सुना कल तलक शोर-ए-अनादिल था चमन में वाँ आज इक क़यामत से कोई दिल भी धड़कता न सुना किसी जानिब से चले 'राही' हवा-ए-नमनाक चारागर ज़िक्र-ए-तुनुक-आबी-ए-दरिया न सुना