बरसों पहले चलते चलते यूँही उठा लाया काली रातों से मैं इक रौशनी उठा लाया इश्क़ को वहीं छोड़ आया मैं हाल पर उस के इश्क़ में से पर अपनी बंदगी उठा लाया सुर्ख़ से किसी कपड़े को लपेटे आई शाम मानो आसमाँ उस की ओढ़नी उठा लाया पूछी जब मिसाल उस के हुस्न की किसी ने तो फूल की मैं नाज़ुक सी पंखुड़ी उठा लाया ये भी इक इनायत है उस के पहलू से हासिल या'नी जब भी आया मैं ताज़गी उठा लाया चूमा मैं ने उस का माथा बड़ी मोहब्बत से और होंटों पर अपने शाइ'री उठा लाया