बस इक धोका रह जाता है बंदा तन्हा रह जाता है देखे देखे मंज़र में भी कुछ अन-देखा रह जाता है नींद मुकम्मल करते करते ख़्वाब अधूरा रह जाता है शाम ढले उस पेड़ पे तन्हा एक परिंदा रह जाता है पेड़ अगर कट भी जाए तो पेड़ का साया रह जाता है इक लम्हे की तह में रक्खा एक ज़माना रह जाता है तुम तो क्या क्या गँवा देते हो हम से क्या क्या रह जाता है हिजरत करने वालों देखो पीछे मलबा रह जाता है लोग तो पार उतर जाते हैं दरिया देखता रह जाता है बादल देख के चल देते हैं सहरा प्यासा रह जाता है आख़िरी बस का एक मुसाफ़िर शब-भर बैठा रह जाता है कब पड़ता है उस का पाँव रस्ता देखता रह जाता है बात कुछ और निकल आती है सब कुछ सोचा रह जाता है 'जानाँ' इक तस्वीर न हो तो कमरा सूना रह जाता है