बस एक साँस लिया खुल के लख़्त-लख़्त हुआ कि ज़िंदगी न हुई काँच का दरख़्त हुआ बहुत ज़हीन भी होना वबाल-ए-जाँ है यहाँ हमारे साथ हर इक इम्तिहान सख़्त हुआ जहाँ पे मुझ को हलीमी से काम लेना था उसी मक़ाम पे लहजा मिरा करख़्त हुआ न मैं किसी के लिए ज़ाद-ए-वस्ल बन पाया न हिजरतों में मिरा कोई साज़-ए-रख़्त हुआ 'तलब' हवाओं के सीने पे साँप लोट गया फिर एक नन्हा सा पौदा घना दरख़्त हुआ