बस इसी का ग़म नहीं है दिल है दीवाना तिरा बंदा-ए-बे-दाम है हर-मस्त-ओ-फ़रज़ाना तिरा मज़हर-ए-रंग-ए-हक़ीक़त जब है पैमाना तिरा बाइ'स-ए-सर-मस्ती-ए-आलम है मय-ख़ाना तिरा ज़िक्र करती है ज़बाँ आलम की रोज़ाना तिरा दिल ने चुप रह कर सुना आँखों से अफ़्साना तिरा गर यही आलम रहा ज़ौक़-ए-हिजाब-ए-हुस्न का राज़-ए-दिल इफ़्शा न कर दे कोई दीवाना तिरा मशरब-ए-फ़िरदौस पर तू भी अमल कर नासेहा ला ख़ुदा के नाम पर भर दूँ मैं पैमाना तिरा साया-ए-रहमत में हो जिस का जहान-ए-आरज़ू क्यों वली कर दे न उस को लुत्फ़-ए-शाहाना तिरा दास्तान-ए-हुस्न और उस की नुमूद-ए-दिल-नवाज़ ख़ाक में मिल कर बयाँ करता है परवाना तिरा 'शाद' साक़ी की निगाहों में रहें हर हाल में यूँ गुनहगारों को है महबूब मय-ख़ाना तिरा