बस इतनी रह गई अहल-ए-वफ़ा की दास्ताँ बाक़ी सर-ए-महशर भी है ज़िक्र-ए-जबीन-ओ-आस्ताँ बाक़ी रहेगा आशियाँ भी गर रहेगा गुलिस्ताँ बाक़ी ये ज़िद अब तो रहेगी उम्र भर ऐ बाग़बाँ बाक़ी मैं हर नक़्श-ए-क़दम पर झूम के सज्दे में गिरता हूँ रहे क्यों एहतिराम-ए-कूचा-ए-पीर-ए-मुग़ाँ बाक़ी मिटा सकते नहीं हश्र-ओ-क़यामत भी ये दो चीज़ें मिरे सज्दे रहेंगे और उन का आस्ताँ बाक़ी नज़र जल्वों में गुम है और जल्वे गुम निगाहों में नहीं अब कोई पर्दा मेरे उन के दरमियाँ बाक़ी न फूँक उन को ख़ुदा के वास्ते ए बर्क़ रहने दे इन्हीं दो चार तिनकों से है नाम-ए-आशियाँ बाक़ी दिया साक़ी ने अपने सर से सदक़ा करके पैमाना न जब कोई रहा जाम-ए-शराब-ए-अर्ग़वाँ बाक़ी अभी होने को है जिन से तक़ाज़ा-ए-अजल पैहम कुछ ऐसे दिन भी हैं मिनजुमला-ए-उम्र-ए-रवाँ बाक़ी दम-ए-आख़िर वो आँसू भी गिरा मिज़्गाँ से बिस्तर पर जो अपने दर्द-ए-दिल का रह गया था राज़-दाँ बाक़ी न मुझ सा भी कोई हो ख़ानुमाँ बर्बाद दुनिया में कि मर जाने पे भी हैं सैकड़ों बर्बादियाँ बाक़ी दम-ए-रुख़्सत बस इतनी आरज़ू है ऐ चमन वालो हमारे बा'द भी रखना ख़याल-ए-आशियाँ बाक़ी जबीन-ए-शौक़ में ऐसा भी इक बेताब सज्दा है कि है लग़्ज़िश से जिस की आबरू-ए-आस्ताँ बाक़ी बहार-ए-लाला-ओ-गुल हो कि हो रंग-ए-शफ़क़ 'अफ़्क़र' रहेंगी हश्र तक ख़ून-ए-वफ़ा की सुर्ख़ियाँ बाक़ी