बस नजात-ए-ज़िंदगी तो इश्क़-ए-रूहानी में है ये सज़ा-ए-मौत सुन कर जिस्म हैरानी में है रेत पर फैला हुआ है ख़्वाब जैसा इक सराब ख़ुश्क आँखों का सुकूँ सहरा के इस पानी में है इज़्तिराबी कैफ़ियत ही इस ज़मीं का है नसीब हर घड़ी गर्दिश में है हर दम परेशानी में है कुछ ग़ुबार आँखों तक आया राज़ हम पर तब खुला क़ाफ़िला अब भी कोई इस दिल की वीरानी में है फिर किसी तूफ़ान की आमद का अंदेशा हुआ फिर क़यामत सी बपा दरिया की तुग़्यानी में है यूँही आसानी से जीने का इरादा कर लिया ये न देखा कितनी मुश्किल ऐसी आसानी में है इस क़दर औराक़-ए-माज़ी पर चढ़ा गर्द-ओ-ग़ुबार शायद अब इन की जगह बहते हुए पानी में है अपनी मिट्टी से 'अलीना' रूह की उल्फ़त तो देख मुज़्तरिब है ये बहुत गर तू परेशानी में है