कल ज़िंदगी के ख़्वाब की ता'बीर मिल गई थी जिस की मुझ को जुस्तुजू वो हीर मिल गई अपनी दुआ पे था मुझे कुछ इस क़दर यक़ीन माँगी ख़ुदा से जो वही जागीर मिल गई जो लोग बे-वक़ार से फिरते थे शहर में मेरे सबब से उन को भी तौक़ीर मिल गई बरसें वफ़ा के चाँद की किरनें कुछ इस तरह बे-नूर आँगनों को भी तनवीर मिल गई क़िर्तास-ए-ज़िंदगानी पे देखा जो ग़ौर से तुझ जैसी हू-ब-हू कोई तस्वीर मिल गई हाथों की उल्टी सीधी लकीरों को देख कर वो शोख़ कह रहा था कि तहरीर मिल गई