बस्ती तमाम ख़्वाब की वीरान हो गई यूँ ख़त्म शब हुई सहर आसान हो गई बे-फ़िक्र हो गया हूँ दिल-ओ-जाँ से इस लिए उस की निगाह-ए-नाज़ निगहबान हो गई है मर्तबा बुलंद सितारों से ऐ फ़लक मेरा नसीब ख़ाक-ए-खुरासान हो गई शफ़्फ़ाफ़ था ये शीशा-ए-दिल उस के सामने बिजली कड़क के आप ही हैरान हो गई उलझा हुआ था इश्क़ में पहले ही ना-मुराद नागाह रुख़ पे ज़ुल्फ़ परेशान हो गई