बस्तियाँ चुप जो हुईं बिन बोले शहर-ए-ख़ामोश में मदफ़न बोले बाग़बानी का है सब को दा'वे आ गया वक़्त कि गुलशन बोले नोक-ए-ख़ंजर पे सदा तुलती है अब अगर बोल सके फ़न बोले दिल पे हैं नक़्श वो तेरी बातें जब ज़बाँ गुंग हुई तन बोले कोई पैराया-ए-इज़हार तो हो चुप हैं अल्फ़ाज़ तो धड़कन बोले