बता तू दिल के बचाने की कोई राह भी है तिरी निगाह की नावक-फ़गन पनाह भी है सज़ा के वास्ते इक़रार भी गुनाह भी है और एक तुम सा कोई दूसरा गवाह भी है ख़ुदा का घर भी है दिल में बुतों की चाह भी है सनम-कदा भी है दिल अपना ख़ानक़ाह भी है अजीब हाल है दुनिया-परस्त लोगों का मआद का भी ख़याल और फ़िक्र-ए-जाह भी है इलाही ख़िज़्र कहूँ इश्क़ को कि ग़ोल-ए-तरीक़ कि राहबर भी ये है और सद्द-ए-राह भी है उसी पे मरते हैं हम और उसी को चाहते हैं वही है आलिम ओ दाना वही गवाह भी है गले से आ के लिपट जा ख़ुदा को मान ओ बुत है आज तुझ पे भी जौबन उरूज-ए-माह भी है मुराद तुझ से न माँगूँ तो किस से माँगूँ मैं टकड़-गदा तिरे दर का गदा भी शाह भी है अगरचे दिल से हूँ बंदा बुतों का मैं लेकिन ज़बाँ पे कलमा-ए-तहरीम-ए-ला-इलाह भी है गुनाह बख़्श दे 'अंजुम' के ऐ रहीम ओ करीम कि पुर-गुनाह भी है और उज़्र-ख़्वाह भी है दिखाएगा किसे महशर में अपना मुँह 'अंजुम' सियाहकार भी है और रू-सियाह भी है