बतौर-ए-यादगार-ए-ज़ोहद मय-ख़ाने में रख देना मिरी टूटी हुई तौबा को पैमाने में रख देना कहा था ऐ दिल-ए-ना-फ़हम-ओ-नादाँ तुझ से ये किस ने ख़ुदा-ख़ाने की हुर्मत को सनम-ख़ाने में रख देना पसंद आए न आए मुनहसिर है ये तबीअत पर किसी के सामने दिल हम को नज़राने में रख देना दोबारा फिर किसी दिन मेरे काम आएगी ऐ साक़ी जो मय पीने से बच जाए वो पैमाने में रख देना कहीं आएँ कहीं जाएँ कहीं उट्ठें कहीं बैठें क़दम हिर-फिर कर अपना हम को बुत-ख़ाने में रख देना चराग़-ए-अंजुमन अपनी ज़िया फैलाने वाला है उठा कर शोला-ए-उल्फ़त को परवाने में रख देना कहाँ हम ढूँडते तुझ को फिरेंगे उस घड़ी साक़ी सुबूही के लिए थोड़ी सी पैमाने में रख देना नज़र आते हैं कुछ अंगूर मुझ को ऐ मिरे साक़ी लहू तौबा का उन के एक इक दाने में रख देना ख़ता-ए-इश्क़ पर क्यूँ 'नूह' अपनी जान खो बैठे रक़म इतनी बड़ी और इस को जुर्माने में रख देना