बातों से तेरी बात की ख़ुशबू निकल पड़े पहचान का कहीं कोई पहलू निकल पड़े कम-कम कहूँ मैं शेर सुनाऊँ बहुत ही कम क्या जो किसी ग़ज़ल से कभी तू निकल पड़े बोसा कहा था आप ने अबरू चढ़ा लिए इतनी ज़रा सी बात पे चाक़ू निकल पड़े इस बार उस ने आप से तुम कह दिया हमें ऐसी ख़ुशी कि आँख से आँसू निकल पड़े कहते हैं रौशनी की हिफ़ाज़त करेंगे हम सूरज की देख-भाल को जुगनू निकल पड़े कानों में रस थी घोलती संतों की बानीयाँ त्रिशूल ले के आज के साधू निकल पड़े इफ़्लास के लिबास में ये बात है अगर शाहाना आन-बान से उर्दू निकल पड़े जब दीन की मदद को पुकारा गया 'हफ़ीज़' फाँका न अपने हाथ का सत्तू निकल पड़े