बा-वफ़ाई की अदा पाने लगा हूँ तुझ में ऐ जफ़ा-दोस्त ये क्या देख रहा हूँ तुझ में तू ने अब तक मुझे काँटों के सिवा कुछ न दिया मैं तो इक फूल की मानिंद खिला हूँ तुझ में तू वो दरिया है कि जिस का कोई साहिल ही नहीं मैं सफ़ीने की तरह डूब गया हूँ तुझ में मेरा दावा है कि तू ने भी न देखे होंगे ऐसे जल्वे कि जो मैं देख चुका हूँ तुझ में तुझ से बिछड़े तो ज़माना हुआ लेकिन अब तक याद आता है कि कुछ भूल गया हूँ तुझ में तेरे चेहरे से हटाई नहीं जातीं नज़रें क्या ख़बर देर से क्या देख रहा हूँ तुझ में पास इतना कि तिरी साँस से टकराती है साँस दूर इतना कि तुझे ढूँढ रहा हूँ तुझ में बेवफ़ा तेरी ज़बाँ पर ये वफ़ा की बातें ऐसा लगता है कि मैं बोल रहा हूँ तुझ में