बेबसी और कुछ दिनों तक है आ गई चाँदनी सरों तक है कौनसा दौर आ गया साहब शेर महदूद क़ाफ़ियों तक है शम्स से जाने क्यों मोहब्बत की आप की हैसियत दियों तक है जब तुम्हें वक़्त हो चली आना हिज्र की शब कई शबों तक है इस मोहब्बत को किस तरह भूलूँ नक़्श जिस का पड़ा दरूँ तक है क्यों ये ख़ुशबू जगह जगह फैली फूल पत्ती तो बस तनों तक है आप की सोच से बहुत आगे बस रही ज़ीस्त बुलबुलों तक है कौन बख़्शे मुझे ‘सफ़र’ जन्नत शाइरी आ गई लबों तक है