बेड़ियाँ डाल दे आज़ाद हुई जाती है ज़िंदगी इश्क़ में बर्बाद हुई जाती है दिल की बस्ती में कोई और न आया मालिक तेरी दुनिया है जो आबाद हुई जाती है इश्क़ के खेल में फ़रहाद हुआ है शीरीं कोई शीरीं है जो फ़रहाद हुई जाती है खो चुका हूँ तुझे पर आज भी तेरी ख़ातिर हाथ उठ जाते हैं फ़रियाद हुई जाती है दिन-ब-दिन रोग ये बढ़ता ही चला जाता है दिन-ब-दिन तू मेरी बुनियाद हुई जाती है