बेहाल दिल का हाल करूँ तो ग़ज़ल कहूँ जीने का फिर मलाल करूँ तो ग़ज़ल कहूँ दिल तो मिसाल-ए-संग है टूटेगा क्या भला ख़स्ता-जिगर का हाल करूँ तो ग़ज़ल कहूँ ये रंग चार रोज़ा है रानाई चार रोज़ जो हुस्न ला-ज़वाल करूँ तो ग़ज़ल कहूँ है लुत्फ़ इस मियाना-रवी में भला कहाँ कुछ अम्र बा-कमाल करूँ तो ग़ज़ल कहूँ मौसम न सर्द गर्म न तूफ़ाँ का ज़ोर है अब ख़ुद ही कुछ वबाल करूँ तो ग़ज़ल कहूँ मुद्दत हुई हबीब से शिकवा किए हुए अब उस से कुछ सवाल करूँ तो ग़ज़ल कहूँ हैं इस जहाँ में अच्छे सुख़नवर हज़ार-हा 'निकहत' को बे-मिसाल करूँ तो ग़ज़ल कहूँ