बे-इंतिहा होना है तो इस ख़ाक के हो जाओ इम्काँ की मसाफ़त करो अफ़्लाक के हो जाओ सब क़िस्सों को छोड़ो दिल-ए-सद-चाक के हो जाओ इस दौर-ए-जुनूँ-ख़ेज़ में इदराक के हो जाओ ख़ुशियों से कहाँ रब्त है हम को भी तुम्हें भी आ जाओ इसी लम्हा-ए-नमनाक के हो जाओ इस बाग़ में शमशीर-ए-हवा से न बचोगे ख़ुश रंग हो जाओ किसी पोशाक के हो जाओ बे-ज़ाएक़ा होने से यही ज़ाइक़ा अच्छा अश्जार से उतरो ख़स-ओ-ख़ाशाक के हो जाओ सर-पोशी का फ़न हाथों को सिखलाओ वगरना बे-आँख के बे-कान के बे-नाक के हो जाओ 'शहपर' की तरह ख़ाक से उड़ते ही फिरोगे बनना है तो बस जाओ किसी चाक के हो जाओ