बे-ज़बाँ कलियों का दिल मैला किया ऐ हवा-ए-सुब्ह तू ने क्या किया की अता हर गुल को इक रंगीं क़बा बू-ए-गुल को शहर में रुस्वा किया क्या तुझे वो सुब्ह-ए-काज़िब याद है रौशनी से तू ने जब पर्दा किया बे-ख़याली में सितारे चुन लिए जगमगाती रात को अंधा किया जाते जाते शाम यक-दम हंस पड़ी इक सितारा देर तक रोया किया रूठ कर घर से गया तू कितनी बार क्या दर-ओ-दीवार ने पीछा किया अपनी उर्यानी छुपाने के लिए तू ने सारे शहर को नंगा किया