बे-ख़ुद मुझे ऐ जल्वा-ए-जानाना बना दे दुनिया मिरी हैरत को तमाशा न बना दे ऐ इश्क़ अब एहसास से बेगाना बना दे वर्ना कहीं ग़म-ए-दिल को खिलौना न बना दे जिस बज़्म में पहुँचूँ मैं बनूँ बज़्म का हासिल इतना तो तिरी चश्म-ए-करीमाना बना दे आया हूँ मैं भटका हुआ सहरा-ए-जुनूँ से ऐ अक़्ल कहीं तू भी न दीवाना बना दे महफ़िल मिरी आँखों में तुझे ढूँड रही है तू मुझ को कहीं अंजुमन-आरा न बना दे बद-बख़्त हूँ जाते हुए डरता हूँ चमन में क़िस्मत कहीं हर फूल को काँटा न बना दे 'जौहर' पे सितम तर्क-ए-मोहब्बत की है तम्हीद ये जौर तुम्हें और भी प्यारा न बना दे हर गाम पे कुछ फूल चुने जाते हो 'जौहर' ये शौक़ कहीं बाग़ को सहरा न बना दे