बे-ख़याली है कुछ ख़याल नहीं अब ग़म-ए-जाँ का भी मलाल नहीं दिन निकलता है और ढलता है है ग़लत दोस्तो ज़वाल नहीं ज़िंदगी ग़म तिरी अमानत है तुझ से मेरा कोई सवाल नहीं दोस्तों ने भी साथ छोड़ दिया जेब में जब से मेरी माल नहीं हुस्न वाले बहुत हैं दुनिया में आप जैसा मगर जमाल नहीं शाइ'री अपना मश्ग़ला है 'ख़तीब' राहत-ए-जाँ है ये वबाल नहीं