बे-मेहरी-ए-दोस्ताँ अलग है और उस पे ग़म-ए-जहाँ अलग है आ'साब अलग थके हुए हैं और दिल है कि सरगिराँ अलग है उस रंज को बीच में न लाओ उस रंज की दास्ताँ अलग है मौक़ूफ़ है जो तिरी नज़र पर वो लज़्ज़त-ए-जावेदाँ अलग है सरसब्ज़ है जो तिरे करम से वो शाख़-ए-मलाल-ए-जाँ अलग है ऐ मज्मा-ए-इल्म-ओ-फ़ज़्ल-ओ-दानिश तुम सब से मिरा बयाँ अलग है लगता है मैं अजनबी हूँ तुम में लगता है मिरी ज़बाँ अलग है