बे-मेहर-ओ-वफ़ा है वो दिल-आराम हमारा क्या जाने क्या होवेगा अंजाम हमारा क्या क़हर है औरों से वो मिलता फिरे ज़ालिम और मुफ़्त में अब नाम है बद-नाम हमारा ऐ आब-ए-दम-ए-तेग़-ए-सितम-कैश बुझा प्यास होता है तिरी चाह में अब काम हमारा लबरेज़ कर इस दौर में ऐ साक़ी-ए-कमज़र्फ़ मत रख मय-ए-गुलगूँ से तही जाम हमारा किस तरह निकल भागूँ मैं अब आँख बचा कर सद चश्म से याँ है निगराँ दाम हमारा ये ज़ुल्फ़-ओ-रुख़-ए-यार है ऐ शैख़ ओ बरहमन बिल्लाह यहाँ कुफ़्र और इस्लाम हमारा बैअत का इरादा है तिरे सिलसिले में जूँ शाना है अब ऐ ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम हमारा उस शोख़ तलक कोई न पहुँचा सका हमदम जुज़-हुक़्क़ा यहाँ बोसा ब-पैग़ाम हमारा क्या कहिए किस अंदाज़ से शरमाए है वो शोख़ तक़रीबन अगर ले है कोई नाम हमारा सय्याद से कहते थे कि बे-बाल-ओ-परी में आज़ाद न कर बद है कुछ अंजाम हमारा पर्वाज़ की ताक़त नहीं याँ ता-सर-ए-दीवार क्यूँकर हो पहुँचना ब-लब-ए-बाम हमारा इस इश्क़ में जीते नहीं बचने के 'नसीर' आह हो जाएगा इक रोज़ यूँ ही काम हमारा