बीम-ए-रक़ीब से नहीं करते विदा-ए-होश By Ghazal << सुबह से रात तक घर में बटी... वार हुआ कुछ इतना गहरा पान... >> बीम-ए-रक़ीब से नहीं करते विदा-ए-होश मजबूर याँ तलक हुए ऐ इख़्तियार हैफ़ जलता है दिल कि क्यूँ न हम इक बार जल गए ऐ ना-तमामी-ए-नफ़स-ए-शोला-बार हैफ़ Share on: