बे-सबब ही कभी आवाज़ लगाओ तो सही अपने होने का कुछ एहसास दिलाओ तो सही साँस लेता हुआ हर रंग नज़र आएगा तुम किसी रोज़ मिरे रंग में आओ तो सही ताकि फिर रात की तस्वीर उतारी जाए इन चराग़ों को ज़रा देर बुझाओ तो सही हौसला है तो जज़ीरा भी तुम्हारा होगा ख़ौफ़ की कश्तियाँ साहिल पे जलाओ तो सही ज़िंदगी जिस्म से बाहर भी नज़र आए कभी कोई हंगामा सर-ए-राह उठाओ तो सही मेरी मिट्टी में मोहब्बत ही मोहब्बत है 'नबील' छू के देखो तो सही हाथ लगाओ तो सही