बे-सबब ही कोई पत्थर तो न आया होगा आईना आप ने औरों को दिखाया होगा वो दीवाना जो मोहब्बत से शनासा होगा उस ने इस राह में क्या कुछ न लुटाया होगा दश्त पहले की तरह आज भी प्यासा होगा अब्र बरसा भी तो दरियाओं पे बरसा होगा क़हक़हा बार था जो शख़्स भरी महफ़िल में आ के तन्हाई में कुछ सोच के रोया होगा हाल गुलशन का असीरान-ए-क़फ़स क्या जानें ऐ सबा तू ही बता तू ने तो देखा होगा कौन इस धूप में कमरे से निकलता 'अनवर' जिस को चलना था कड़ी धूप में चलता होगा