बे-ताबियों में अश्कों में नालों में घिर गए या'नी हम अपने चाहने वालों में घिर गए आया न ख़्वाब में भी कभी अपना कुछ ख़याल हम इस क़दर अँधेरों उजालों में घिर गए सब अहल-ए-ज़र्फ़ राह-ए-अमल पर हुए रवाँ कम-ज़र्फ़ इधर उधर के ख़यालों में घिर गए उन के क़दम न चूम सकीं मंज़िलें कभी राही जो अपने पाँव के छालों में घिर गए उन को ख़ुशी मैं उन की मोहब्बत में क़ैद हूँ मुझ को ख़ुशी वो मेरे ख़यालों में घिर गए जिन को नसीब हो न सकें दिल की मस्तियाँ वो बद-नसीब मय के प्यालों में घिर गए इक पल भी रह सके न अकेले हम ऐ 'जिगर' निकले जो भीड़ से तो ख़यालों में घिर गए