बे-तही यही होगी ये जहाँ कहीं होंगे सत्ह काटने वाले सतह-आफ़रीं होंगे आफ़्ताब हट जाए झिलमिलाने वाले ही आसमान-ए-वीराँ में रौनक़ आफ़रीं होंगे ज़िंदगी मनाने को वहम भी ग़नीमत हैं हम भी वहम ही होंगे वहम अगर नहीं होंगे ये जता दिया आख़िर मुझ को मेरे अज्ज़ा ने अपने आप में रहिए वर्ना बस हमीं होंगे दिल मिरा मुदब्बिर है बंद-ओ-बस्त-ए-आलम का मसअले कहीं के हों फ़ैसले यहीं होंगे मेरे साथ आए हैं मेरे साथ जाएँगे हों जहाँ क़दम मेरे रास्ते वहीं होंगे वक़्त की सवारी पर जो रुकी हुई होगी फ़ासले करूँगा तय जो कहीं नहीं होंगे रंग-ओ-नूर परतव हैं जिन की ताब-कारी के तीरगी के वो जल्वे कितने दिल-नशीं होंगे सोचिए तो सहरा है डूबिये तो दरिया है एक दिन 'मुहिब' साहब जिस के तह-नशीं होंगे