बे-वज़्अ शब-ओ-रोज़ की तस्वीर दिखा कर अब दाद न माँगो मुझे ज़ंजीर दिखा कर कैसी हैं कफ़-ए-लौह पे बे-रब्त लकीरें मा'नी न छुपाओ मुझे तहरीर दिखा कर ऐ शीशा-ए-जाँ तुझ में लहू ख़त्म भी होगा ये नश्शा उतर जाएगा तासीर दिखा कर मैं शम-ए-शब-ज़ुल्म हूँ आग़ाज़-ए-सहर तक दिल बुझने लगा सुब्ह की तनवीर दिखा कर किस शाख़ पे है हर्फ़-ए-गुल-ए-सुर्ख़ दिखाओ क़ाइल भी करो लफ़्ज़ की तफ़्सीर दिखा कर यूँ सेहर-ए-कशिश ने किया ए'जाज़ का मुंकिर दीवार-ए-हवा पर मुझे शहतीर दिखा कर है कोह-कनी बार-ए-अमानत अभी सर पर मत रोक मुझे तेशा-ओ-तक़दीर दिखा कर कहते हो कि ख़्वाहिश का समर तुर्श है 'शाहिद' आँखों को ग़लत ख़्वाब की ता'बीर दिखा कर