बे-वक़्त जो घर से वो मसीहा निकल आया घबरा के मिरे मुँह से कलेजा निकल आया मदफ़ून हुआ ज़ेर-ए-ज़मीं क्या कोई वहशी क्यूँ ख़ाक से घबरा के बगूला निकल आया आईने में मुँह देख के मग़रूर हुए आप दो शक्लों से कैसा ये नतीजा निकल आया ज़ख़्मी जो किया तुम ने खुले इश्क़ के असरार जो कुछ कि मिरे दिल में निहाँ था निकल आया ठुकराने लगे दिल को तो बरपा हुए तूफ़ाँ क़तरा जो हटाने लगे दरिया निकल आया अब रुक नहीं सकती है 'मुनीर' आह-ए-जिगर-सोज़ दम घुटने लगा मुँह से कलेजा निकल आया