बे-यक़ीनी के डर से टूट गए हम जो दस्त-ए-हुनर से टूट गए तुम नहीं जानते कि कितने दिल हादसे के असर से टूट गए हौसले धूप ने किए पसपा जिस्म लम्बे सफ़र से टूट गए फिर हमें किर्चियाँ दिखाने लगा ख़्वाब जब ख़्वाब-गर से टूट गए एक ताइर की वापसी न हुई सब्ज़ मौसम शजर से टूट गए कभी हम चाक तक नहीं पहुँचे और कभी कूज़ा-गर से टूट गए क्या तिलिस्मी निगाह थी किसी की लोग पहली नज़र से टूट गए सिलसिले सच्ची चाहतों के 'सफ़ीर' एक झूटी ख़बर से टूट गए