ब-फ़ैज़-ए-गर्दिश-ए-अय्याम हम को किसी सूरत नहीं आराम हम को सुकूँ दुश्मन जुनूँ-पर्वर इरादो न कर देना कहीं बदनाम हम को फ़सुर्दा ख़ल्वतों में याद आ कर रुलाते हैं वो सुब्ह-ओ-शाम हम को उठा ऐ मुतरिबा साज़-ए-मोहब्बत पिला ऐ साक़ी-ए-गुलफ़ाम हम को न हम को ज़िंदगी की है ज़रूरत न दुनिया से है कोई काम हम को किसी की बेवफ़ाई के फ़साने सुनाता है दिल-ए-नाकाम हम को किसी ने अपनी मस्त आँखों से 'नय्यर' दिया है प्यार का पैग़ाम हम को