भर दीं शबाब ने ये उन आँखों में शोख़ियाँ तिल भर भी अब जगह नहीं उन में हया की है फेंक आए उस को जा के वो कू-ए-रक़ीब में मिट्टी ख़राब मेरे दिल-ए-मुब्तला की है देता हूँ दिल ख़ुशी से मिरी जान छोड़िए इस को न लीजिए ये अमानत ख़ुदा की है तौबा न मुँह लगाएगी रिंदों को दुख़्त-ए-रज़ क़ालिब में उस के रूह किसी पारसा की है तेरे हिनाई हाथ तक उन को है दस्तरस ऐ रश्क-ए-गुल चमन में ये क़िस्मत हिना की है लाखों शहीद-ए-नाज़ गए हैं जहान से मुल्क-ए-अदम में धूम तुम्हारी जफ़ा की है चोटी के शेर तू ने कहे इस ज़मीन में सच है 'वसीम' तेरी तबीअ'त बला की है