भरे जहाँ में कोई राज़दार भी न मिला क़रार ढूँडने निकले क़रार भी न मिला ये मेरी सोख़्ता-बख़्ती नहीं तो फिर क्या है वो फूल लाए तो मेरा मज़ार भी न मिला न जाने कैसी करामत थी दस्त-ए-साक़ी में ब-क़ैद-ए-होश कोई होशियार भी न मिला चमन चमन में उदासी का बोल-बाला है बहार कैसी निशान-ए-बहार भी न मिला बहुत थे ऐश के लम्हों में जाँ-निसार अपने पड़ा जो वक़्त कोई ग़म-गुसार भी न मिला मैं अपने गाँव में रह कर भी अजनबी ही रहा मुझे तो अपनों से थोड़ा सा प्यार भी न मिला ख़राब ही रही क़िस्मत ख़िज़ाँ-नसीबों की बहार आई तो लुत्फ़-ए-बहार भी न मिला हँसी तो अपना मुक़द्दर न थी मगर 'कौसर' हमें तो रोने पे कुछ इख़्तियार भी न मिला