भरे पड़े हुए सब बाग़-ओ-राग़ थे उस दिन गली में फूल घरों में चराग़ थे उस दिन ये और बात तिरे सामने नहीं आए मिरे जिलौ में कई बद-दिमाग़ थे उस दिन उड़ा लिया था किसी ने ख़ुमार आँखों से तही सबाहत-ए-गुल से अयाग़ थे उस दिन शिकस्ता-हाल पड़ा था मैं अपने बिस्तर पर खुले हुए सभी रंग-ए-फ़राग़ थे उस दिन कहीं लिबास बदलते हुए सितारे थे कहीं लहकते हुए ख़ाना-बाग़ थे उस दिन हमें वो ढूँड न पाया था रात-भर 'साजिद' कि हम उसी की तरह बे-सुराग़ थे उस दिन