भटक के राह से हम सब को आज़मा आए फ़रेब दे गए जितने भी रहनुमा आए हम उन को हाल दिल-ए-ज़ार भी सुना आए कमाल-ए-जुरअत-ए-इज़हार भी दिखा आए करें तो किस से करें ज़िक्र-ए-ख़ाना-वीरानी कि हम तो आग नशेमन को ख़ुद लगा आए ख़याल-ए-वस्ल में रहते हैं रात भर बेदार तुम्हारे हिज्र के मारों को नींद क्या आए रहीन-ए-ऐश-ओ-तरब हैं जो रोज़ ओ शब उन को पसंद कैसे मिरे ग़म का माजरा आए कभी हमें भी मयस्सर हो रूठना उन से कभी हमारे भी दिल में ये हौसला आए हर इक से पूछते हैं हाल कृष्ण 'मोहन' का जिसे अदा-ए-सितम से वो ख़ुद मिटा आए