भटका हुआ ख़याल है उक़्बा कहें जिसे भूला हुआ सा ख़्वाब है दुनिया कहें जिसे देखे शब-ए-फ़िराक़ में कोई तो हम दिखाएँ दिल का वो दाग़ चाँद का टुकड़ा कहें जिसे ज़ालिम की आरज़ू ने जगह ली है इस तरह दिल में छुपा हुआ कोई काँटा कहें जिसे इन आरसी के देखने वालों को क्या परख अच्छा है वो हसीन हम अच्छा कहें जिसे गुलज़ार में वो फूल है जिस का है नाम मय ज़ाहिद वो सर्द बाग़ है मीना कहें जिसे वाक़िफ़ नहीं वो रोज़-ए-क़यामत के तूल से वा'दा किया है वा'दा-ए-फ़र्दा कहें जिसे हासिल अगर हुई भी तो हासिल नहीं है कुछ बे-ए'तिबार चीज़ है दुनिया कहें जिसे इतनी तो हो बयान में वाइ'ज़ शगुफ़्तगी हम रिंद सुन के क़ुलक़ुल-ए-मीना कहें जिसे अहल-ए-हरम में जा के बिना आज शैख़-ए-वक़्त काफ़िर 'रियाज़' पीर-ए-कलीसा कहें जिसे