भटका करूँगा कब तक राहों में तेरी आ कर तुझ को भुला सुकूँ मैं मेरे लिए दुआ कर कब तक ये तेरी हसरत कब तक ये मेरी वहशत इन सारी बंदिशों से मुझ को कभी रिहा कर एक उम्र से तुझे मैं बे-उज़्र पी रहा हूँ तू भी तो प्यास मेरी ऐ जाम पी लिया कर कल रात ज़िंदगी ये मुझ से तड़प के बोली कुछ देर को तो हो कर मेरा भी तू रहा कर रिश्ते कई सुनहरे इस ज़िंदगी से पाए रक्खा मगर न हम ने उन को कभी बचा कर दिल के खंडर से पंछी यादों के जा न पाए देखा है हम ने उन को कितनी ही बार उड़ा कर वो क़ुर्ब हो कि दूरी सब ख़्वाहिशें अधूरी 'आलोक' आ गए हैं दरिया में हम बहा कर