भेद कुछ खुलता नहीं दीवार-ओ-दर में कौन है घर से बे-घर हो गया हूँ मेरे घर में कौन है सब के सब पागल नज़र आते हैं मुझ को शहर में मेरे जैसा और पागल शहर-भर में कौन है हक़-ब-जानिब कौन है अब आप ही बतलाईए मैं नहीं बतलाऊँगा मेरी नज़र में कौन है दिल के मलबे में पड़ा है और चिल्लाता नहीं डूबता है और चुप है चश्म-ए-तर में कौन है कौन अपना घर उठाए फिर रहा है दर-ब-दर घर में बैठा है मगर हर-दम सफ़र में कौन है सोचता रहता हूँ 'अल्वी' पर समझ पाता नहीं मैं नहीं तो इस बला के शोर-ओ-शर में कौन है