भुगत रहा हूँ ख़ुद अपने किए का ख़म्याज़ा टपक रहा है जो आँखों से ये लहू ताज़ा किसी की याद के साए को हम-सफ़र समझा लगा सको तो लगा लो जुनूँ का अंदाज़ा किसे मजाल कि अब मेरे दिल में घर कर ले है गरचे अब भी खुला अपने दिल का दरवाज़ा निगार-ए-वक़्त ने हर-सू कमंद डाली है बिखर न जाए कहीं अंजुमन का शीराज़ा ख़ुदा गवाह है उन को भी दे रहा हूँ दुआ जो कसते रहते हैं 'शाकिर' पे रोज़ आवाज़ा