भूक मैं अमीरी की चीख़ती दिखा दूँगा बोतलों के होंटों पर तिश्नगी दिखा दूँगा जिस के मुल्क की बच्ची भात कहती मर जाए उस के बादशाहों की मुफ़्लिसी दिखा दूँगा क़र्ज़ बोए खेतों में भूक कैसे उगती है पेड़ से लटकती हर ख़ुद-कुशी दिखा दूँगा तेरे उजले महलों में लूट कर सजाई है झोंपड़ी के हिस्से की रौशनी दिखा दूँगा नफ़रतों की तक़रीरें कितने घर जला बैठीं आग तेरे चेहरे से बोलती दिखा दूँगा इल्म ले के निकले थे धर्म सर पे ढोते हैं भटकी नौजवानी की ज़िंदगी दिखा दूँगा क्या हुआ अमावस है जुगनू फिर भी जुगनू है मैं उन्हें अँधेरों में रौशनी दिखा दूँगा