भूल जाएँ हम उसे ऐसा नज़ारा तो नहीं याद पर आता रहे ये भी गवारा तो नहीं दिल धड़कता है धड़कता है धड़कता है मिरा वो तुम्हारा वो तुम्हारा वो तुम्हारा तो नहीं आज-कल पत्थर उठा कर सोचता है हर कोई सामने इंसान है लेकिन हमारा तो नहीं ख़्वाब कितने शाद हैं और रात भी आबाद है जाग कर मैं ने ही ख़ुद उन को सँवारा तो नहीं बात बढ़ने के लिए मैं किस क़दर बे-ताब हों और बढ़ाने की तरफ़ तेरा इशारा तो नहीं हार जाने में मज़ा है तुम से गर हो सामना जीतना वैसे 'अलख़' को नागवारा तो नहीं