भूल कर पहलू-ए-उम्मीद मैं आया न गया जो पता हम को बताया था वो पाया न गया क़लम-अंदाज़-ए-फ़ना हूँ मिरी वक़अत देखो मैं हूँ वो हर्फ़-ए-मुकर्रर जो मिटाया न गया इस तकल्लुफ़ पे कहाँ लुत्फ़ हम-आग़ोशी का आप से पहलू-ए-तस्वीर में आया न गया वो अदा और थी ये और है फिर और सही बे-नियाज़ी से कोई रंग जमाया न गया इस रुकावट में भी नैरंग-ए-दिल-आवेज़ी है रूठ जाने की है ख़ूबी कि मनाया न गया दे दिया ताक़ से आईना उठा कर उन को हाल मुझ से दिल-ए-हैराँ का दिखाया न गया वरक़-ए-हश्र लगाया है अदम के पीछे जब मिरा हाल ख़मोशी से जताया न गया रब्त-ओ-बे-रब्ती-ए-अन्फ़ास से कुछ भी न हुआ ये ग़ुबार-ए-ग़म-ए-दिल था कि उड़ाया न गया बेकसी-हा-ए-तमन्ना से हया आने लगी तेरी तस्वीर को सीने से लगाया न गया देखना चर्ख़-ए-जफ़ा-कार की मजबूरी को इस तरह हम को गिराया कि उठाया न गया ऐ 'वफ़ा' आरज़ू-ए-मर्ग ने जी छोड़ दिया दस्त-ए-अहबाब से अब ज़हर भी खाया न गया