भूलो सभी मुझे मिरे प्यारो नहीं रहा अब मैं किसी के काम का यारो नहीं रहा जिस के सुमों की धूल सफ़ा का ग़ुबार थी मरकब वो मेरे शाह-सवारो नहीं रहा चर्ख़े समेत चाँद की बुढ़िया गुज़र गई वो चाँद मेरी आँख के तारो नहीं रहा तस्वीर के भरम में मुसव्विर से मिल लिए मंज़र का ए'तिबार नज़ारो नहीं रहा सब होश-मंद अपने सहारे निकल पड़े फिर बे-सहारा कोई सहारो नहीं रहा