बिगड़ने वाला किसी दिन सँवर ही जाएगा मिज़ाज-ए-दोस्त बिल-आख़िर सुधर ही जाएगा मरीज़-ए-इश्क़ अभी बेकली में है लेकिन बुख़ार एक दिन उस का उतर ही जाएगा जो फूल आज सर-ए-शाख़ है महकता हुआ वो एक मौज-ए-सबा में बिखर ही जाएगा गुज़र रही है परेशान ज़िंदगी लेकिन चले चलो कि ये रस्ता गुज़र ही जाएगा इसी ख़याल से नेकी ज़रूर करती हूँ कि बूँद बूँद से तालाब भर ही जाएगा जो गिर के राह में उठने का अज़्म रखता है वो पार आग का दरिया भी कर ही जाएगा ये सोच कर ही रवाबित में इज्ज़ भी रखना है जिस की ख़ाक जहाँ की उधर ही जाएगा 'सबीला' ख़्वाब में वो सैर को अगर निकले उड़न-खटोले पे परियों के घर ही जाएगा