बिजली सी इक और गिरा दी ज़ालिम ने ज़ब्त की सारी खेप जला दी ज़ालिम ने पहली से मैं जान छुड़ाता फिरता था आज नई तस्वीर लगा दी ज़ालिम ने दिल आँखों के साथ ही बाहर आया है इतनी इस की प्यास बढ़ा दी ज़ालिम ने दुपट्टे का पर्दा भी नहीं रक्खा आज पाबंदी इक और उठा दी ज़ालिम ने उस के आगे बात भी करना मुश्किल है होंटों पर भी मोहर लगा दी ज़ालिम ने इश्क़ में ऐसी चोट लगाई सीने पर ग़ज़लों की तकमील करा दी ज़ालिम ने