बिजलियाँ पी के जो उड़ जाते हैं वो क़यामत से भी लड़ जाते हैं क़ल्ब-ए-इंसाँ की जवाँ हिद्दत से आग पर आबले पड़ जाते हैं इश्क़ जब वक़्त को झिंझोड़ता है हादसे काँप के झड़ जाते हैं मक़्तल-ए-ज़ीस्त से महशर की तरफ़ रक़्स करते हुए धड़ जाते हैं आह की ज़लज़ला-अंदाज़ी से अर्श के पाए उखड़ जाते हैं हम वो इंसाँ हैं जो बंदों के लिए किब्रिया से भी बिगड़ जाते हैं